श्रीराम शर्मा और उनका तथाकथित गायत्री परिवार
समाज में ॐ देव की सांस्कृतिक मान्यता को स्थापित करने के बजाय इस पुलिंग प्रधान ॐ देव को विस्थापित कर-हटाकर स्त्रीलिंग प्रधान सरासर झूठी और गलत तथाकथित गायत्री देवी को स्थित-स्थापित कर देव संस्कृति संस्थापन के नाम पर देव विस्थापन रूप देव द्रोहिता रूप आसुरी संस्कृति संस्थापन करने-कराने वाले श्रीराम शर्मा (मृत) और तथाकथित गायत्री परिवार-प्रज्ञा परिवार में लग-बझकर इस प्रकार का आसुरी कुकृत्य का प्रचार-प्रसार क्यों किया कराया जा रहा है । जनमानस को क्या इस आसुरी कुकृत्य को रोकना नहीं चाहिये ? अवश्य ही रोकना चाहिये । रोकना ही चाहिये।
श्रीराम शर्मा और उनके पारिवारिक जनों के महत्वाकांक्षा की पूर्ति और निकृष्ट स्वार्थ लोलुपता की पूर्ति का शिकार धर्म प्रेमी भगवद् जिज्ञासु जन होते जा रहे है और अपने धन-धरम दोनों को इन सबों के दोहन-शोषण का शिकार होते हुये दोनों (धन-धरम) को इन सबों के प्रति खोते जा रहे है । इनके धन-धरम दोनों की रक्षा हेतु मैं सन्त ज्ञानेश्वर इन सबों के आसुरी कुकृत्य का पर्दाफास करता हूँ और परमसत्य प्रधान सर्वोच्चता और सम्पूर्णता लक्षण वाले परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप भगवततत्त्वम् और उनकी प्राप्ति परिचय-पहचान कराने वाले तत्त्वज्ञान रूप भगवद् ज्ञान रूप सत्यज्ञान का संस्थापन कर रहा हूँ तो इस आसुरी समाज द्वारा निन्दक-आलोचक तो कहलाता ही हूँ, उदारवादी समाज भी जब मुझे निन्दक-आलोचक ही कहेगा तो 'सत्य सनातन धर्म' का उद्धोषक- संस्थापक और संरक्षक कौन कहलायेगा? इन तथाकथित गायत्री देवी मान्यता वाले तथाकथित गायत्री देवी वालों के देव संस्थापन संस्कृति के नाम पर देव विस्थापन रूप देव द्रोहिता रूप आसुरी संस्कृति संस्थापन का पर्दाफास-भण्डाफोड करता हुआ इस काल्पनिक और झूठी तथाकथित गायत्री देवी को विस्थापित कर 'ॐ देव' को पुनर्संस्थापन रूप मेरे देव संरक्षण रूप कार्यों में सेवा-सहयोग कर इस देव संस्कृति-संरक्षक रूप मेरे परमपुनीत कार्य में सहभागीदार बनकर यशकीर्ति का भागीदार नहीं बनना चाहिये? अवश्य ही बनना चाहिये । किसी के निन्दक-आलोचक कहने-कहलाने के बावजूद भी मैं सन्त ज्ञानेश्वर अपने सकल संकल्पित-समर्पित समाज के साथ 'धर्म-धर्मात्मा-धरती' की रक्षा और देव संस्कृति संरक्षक वाले परम पुनीत कर्तव्य को करता रहूँगा-- करता ही रहूँगा। मुझे अपने इस परमपुनीत कर्तव्य से दुनिया की कोई भी आसुरी शक्ति-ताकत रोक नहीं सकती क्योंकि पूर्णत: भगवत् कृपा मेरे साथ है क्योंकि यह कार्यक्रम पूर्णत: खुदा-गॉड-भगवान का ही है और सीधे वही ही यह कर-करवा भी रहा है ।
यह देखिए तथाकथित गायत्री परिवार का पाखण्ड
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बंधुओं पहले आप मंत्र (ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्) की तुलनात्मक रूप से नीचे दी गई व्याख्या को देखें, बातें स्पष्ट हो जाएँगी। मात्र शब्दार्थ पर थोड़ा विचार करें-
श्रीराम शर्मा द्वारा दिया गया मंत्र का अर्थ:
---------------------------------
1. ॐ = भारतीय धर्म;
2. भूः = आत्म विश्वास;
3. भुवः = कर्मयोग;
4. स्वः = स्थिरता;
5. तत् = जीवन विज्ञान; सवितु=शक्ति संचय; वरेण्यं=श्रेष्ठता;
6. भर्गो=निर्मलता; देवस्य=दिव्य दृष्टि;
7. धीमहि = सदगुण;
8. धियो=विवेक; योनः=संयम;
9. प्रचोदयात्=सेवा।
नोट – श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘गायत्री महाविज्ञान’ (प्रथम भाग) के पृष्ठ संख्या – 133 से उपर्युक्त उद्धृत।
सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस द्वारा उपर्युक्त मन्त्र का दिया गया अर्थ :
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1. ॐ = ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत;
भूर्भुवः स्वः = तीनों देवों के अलग-अलग वास स्थान का संकेत है;
2. भूः =(श्री ब्रम्हा जी का);
3. भुवः =(श्री विष्णु जी का);
4. स्वः =(श्री महेश जी का);
5. तत्सवितुर्वरेण्यं = सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी उपास्य देव रूप उस;
6. भर्गो देवस्य = तेजस्वरूप देव का;
7. धीमहि = ध्यान करता हूँ;
8. धियो = बुद्धि; यो = जिससे; नः = हमारी; (जिससे हमारी बुद्धि)
9. प्रचोदयात् = शुद्ध रहे या सत्कर्म के प्रति उत्प्रेरित रहे।
उपर्युक्त को देखकर आप स्वयं निर्णय लें की क्या श्रीराम शर्मा द्वारा दिया गया उपर्युक्त शब्दार्थ-भावार्थ सही है ? क्या शब्दों का अर्थ गलत नहीं है ? इस मंत्र के अन्तर्गत किस शब्द का अर्थ ‘गायत्री’ है ? जरा सोचिए, कि जब उपर्युक्त मंत्र के संस्थापक व प्रचारक श्रीराम शर्मा ही उसका सही अर्थभाव नहीं जानते तब वे समाज का क्या सुधार करेंगे ? आखिर गायत्री परिवार जनमानस में भ्रम व भटकाव क्यों पैदा कर रहा है ?
देव मंत्र गायत्री छन्द में वर्णित, गायत्री कोई मंत्र नहीं, कोई देवी नहीं।
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गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, कोई मन्त्र भी नहीं है । फिर गायत्री महाविज्ञान होने का सवाल ही कहाँ? गायत्री संस्कृत-व्याकरण के अन्तर्गत 24 मात्राओं वाला एक छन्द मात्र है । चूँकि यह छन्द ज्ञेय यानी सुन्दर लय-स्वर में गाया जाने वाला है, इसलिये छन्द के प्रकारों में इस गायत्री छन्द का विशेष महत्व है-- विशेष मान्यता है । प्रारम्भ में ॐ देव के प्राप्ति और मांग के पूर्ति हेतु जब लिपिबद्ध किया गया तो यह मन्त्रवित् लिपिबद्धता 24 मात्राओं में जाकर पूरी हो गयी अर्थात् यह ॐ देव मन्त्र गायत्री छन्द में लिपिबद्ध हो गया, यानी इस मन्त्र का छन्द तो गायत्री हुआ मगर इसका अभीष्ट ॐ देव हुआ । पहले-पहल मन्त्र को देखा जाय---
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।
जब आप सभी इस मन्त्र की वास्तविकता को जानने-समझने-देखने-परखने चलेंगे तो मिलेगा कि यह मन्त्र त्रिपदी है यानी तीन पदों -- तीन भागों वाला है । पहले पद या भाग में 'ॐ भूर्भुव: स्व:' अर्थात् ॐ जो ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनों का ही सम्मिलित संयुक्त सांकेतिक नाम है और भू: ब्रम्हा का, भुव: विष्णु का और स्व: महेश का वास स्थान यानी पता रूप स्थान है। दूसरा पद-भाग 'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि' का अर्थ भाव है कि उस सूर्य का भी वरणीय (उपास्य) तेजस्वरूप देव का ध्यान करता हू¡ यानी इस दूसरे पद-भाग में मन्त्र के अभीष्ट उपास्य देव का रूप पहचान बताया गया है और तीसरे पद-भाग 'धियो यो न: प्रचोदयात्' का अर्थ भाव है कि अपने उपास्य देव जिसका ध्यान करता हू¡, कहा गया है, से मांग किया गया है कि जिससे मेरी बुध्दि (सत्य के प्रति-- सत्कर्म के प्रति सदा ही) उत्प्रेरित रहे ।
इस मन्त्र में किसी भी शब्द का अर्थ गायत्री देवी नहीं और गायत्री मन्त्र नहीं है । मन्त्र का अभीष्ट कोई स्त्रीलिंग देवी नहीं है बल्कि 'देवस्य' स्पष्टत: पुलिंग 'देव का' अर्थ भाव है । जब मन्त्र का अभीष्ट पुलिंग सूचक स्पष्टत: ॐ देव है फिर ये स्त्रीलिंग देवी कहाँ से आ गयी? क्या गायत्री देवी पूर्णत: काल्पनिक और झूठी नही हुई ? इस देव मन्त्र को गायत्री कहना भी झूठा और गलत नहीं हुआ ? आप सब इस सच्चाई को जानने-समझने और अपनाने का प्रयास क्यों नहीं करते ?
अजीब आश्चर्य की बात है कि संस्कृत भाषा पढ़ने-पढ़ाने वाले आचार्य पंडित संस्कृत के विद्वानगण भी 'लकीर के फकीर' बनकर गायत्री देवी और गायत्री मन्त्र कहने-लिखने और पढ़ने-पूजने ये लगे है। । प्राय: पंडित जनों के क्या, योगीजन भी इस देव-मन्त्र को गायत्री मन्त्र ही लिखने-पढ़ने-कहने-सुनने में लगे लगाये हैं । क्या इनको इतना भी नहीं सोचना चाहिये? क्या इन्हें इतना भी जानने-समझने की आवश्यकता महसूस नहीं होती कि हमारा अभीष्ट उपास्य तथाकथित स्त्रीलिंग गायत्री देवी है या पुलिंग सूचक यथार्थत: ॐ देव ? मन्त्र तथाकथित गायत्री का है या यथार्थत: ॐ देव का ? इतना भी जानने-समझने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई ।
देव द्रोहिता रूप तथाकथित गायत्री प्रचार से रक्षा हेतु आहवान
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सद्भावी सत्यान्वेषी बन्धुओं। आजकल एक घोर ढोंगी-पाखण्डी व्यक्ति और उसका समाज तथाकथित गायत्री के प्रचार-प्रसार में समाज के धन और धर्मभाव का शोषण करते हुये बेहाया पौध की तरह फैलने-फैलाने में बड़े तेजी से लगा हुआ है । वास्तविकता यह है कि उन सबों को तथाकथित गायत्री मन्त्र का शब्दार्थ भी, मालूम नहीं है। वे सब ॐ देव मन्त्र “ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्!'' को गायत्री छन्द मात्र में उद्धृत होने के कारण तथाकथित गायत्री मन्त्र, तथाकथित गायत्री देवी, तथाकथित गायत्री परिवार आदि-आदि को काल्पनिक रूप से पैदा करके (हालाँकि उन्हीं सबों के तरह से ही पूर्व में भी कुछ ने ऐसा ही किया था जिसको बताकर) और ॐ देव को विस्थापित करके उसके स्थान पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर उसे गायत्री नाम दे रखा है । आप सब मेरी इन दो-एक बातों पर जरा ध्यान दें कि.........
गायत्री छन्द मात्र में उद्धृत होने के नाते ॐ देव मन्त्र के अभीष्ट ॐ देव को समाप्त कर उनके स्थान पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर प्रचारित करना-कराना क्या देव द्रोहिता नहीं है? असुरता नहीं है ? क्या यह मन्त्र देवी (स्त्रीलिंग) प्रधान है या 'भर्गोदेवस्य (पुलिंग) प्रधान? जब यह मन्त्र ॐ देव (पुलिंग) प्रधान है तब यह देवी (स्त्री लिंग) कहाँ से आ गयी ? क्या प्यार पाने के लिये पिता जी को माता जी कहकर बुलाया जाय और उनके फोटो-चित्र को स्त्री रूपा बना दिया जाय ? यही आप सबकी मान्यता है ? पिता जी के नाम-रूप के जगह पर काल्पनिक कोई स्त्री रूपा को पिताजी स्वीकार कर लिया जाय ? और वास्तविक पिता जी को हटा दिया जाय ? उन्हें समाप्त कर दिया जाय ? यही 'देव संस्कृति' संस्थापन कहलायेगा जिसमें ॐ देव को ही समाप्त करके उसके जगह पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर दिया जाय ? क्या यह देव द्रोहिता नहीं है? नि:संदेह यही देव द्रोहिता और यही असुरता भी है । क्या कोई भी मेरी इन बातों का समुचित समाधान देगा ?
सच्चाई और अपनत्व हेतु आप से अनुरोध है कि आप इस देव-द्रोहिता रूप असुरता से बचकर मन्त्र के वास्तविक मान्यता को (ॐ देव मन्त्र-नाम और ॐ देव रूप भर्गो देवस्य' को) महत्व दें, न कि बिल्कुल ही मिथ्यात्व पर आधारित काल्पनिक तथाकथित गायत्री नाम-रूप मन्त्र और देवी को । सच्चाई जानने के लिए उन्हीं लोगों जैसे पूर्व के ऋषि-महर्षियों का कथन अथवा कुछेक ग्रन्थों में आये हुये कुछेक उध्दरण मात्र पर आश्रित रहना पर्याप्त और उचित नहीं है । बुध्दिमानी इसमें नहीं कि कोई कुछ भी कहे तो आँख बन्द करके मान लिया जाय। मन्त्र के अर्थ-भाव और अभीष्ट को स्वयं भी जानें-देखें कि स्वयं इस मन्त्र का ईष्ट-अभीष्ट कौन-है-देव (पुलिंग) या देवी (स्त्रीलिंग)?
चन्दा के नाम पर अपने मिथ्या महत्वाकांक्षा पूर्ति हेतु अपने अनुयायियों से भीख मँगवा-मँगवा कर और नौकरी के रूप में उनको कमीशन देकर अधिकाधिक धन उगाही करने मात्र के लिये ही तथाकथित धर्म नाम आयोजन आयोजित करना क्या जनता और जनमानस के धन और धर्म भाव का शोषण करना नहीं है ? ऐसे शोषण से जनता और जनमानस को नि:संदेह बचाने के लिये, सही और समुचित लगे तो मेरे अभियान में, सद्भाव के साथ लगकर आप यश-कीर्ति के भागीदार बनें और ऐसे आसुरी दुष्प्रचार का भण्डाफोड़ कर जनमानस में इस सच्चाई को रखकर उनके शोषण से उनकी रक्षा करने में अपने को लगें-लगावें । सब भगवद् कृपा ।
समाज में ॐ देव की सांस्कृतिक मान्यता को स्थापित करने के बजाय इस पुलिंग प्रधान ॐ देव को विस्थापित कर-हटाकर स्त्रीलिंग प्रधान सरासर झूठी और गलत तथाकथित गायत्री देवी को स्थित-स्थापित कर देव संस्कृति संस्थापन के नाम पर देव विस्थापन रूप देव द्रोहिता रूप आसुरी संस्कृति संस्थापन करने-कराने वाले श्रीराम शर्मा (मृत) और तथाकथित गायत्री परिवार-प्रज्ञा परिवार में लग-बझकर इस प्रकार का आसुरी कुकृत्य का प्रचार-प्रसार क्यों किया कराया जा रहा है । जनमानस को क्या इस आसुरी कुकृत्य को रोकना नहीं चाहिये ? अवश्य ही रोकना चाहिये । रोकना ही चाहिये।
श्रीराम शर्मा और उनके पारिवारिक जनों के महत्वाकांक्षा की पूर्ति और निकृष्ट स्वार्थ लोलुपता की पूर्ति का शिकार धर्म प्रेमी भगवद् जिज्ञासु जन होते जा रहे है और अपने धन-धरम दोनों को इन सबों के दोहन-शोषण का शिकार होते हुये दोनों (धन-धरम) को इन सबों के प्रति खोते जा रहे है । इनके धन-धरम दोनों की रक्षा हेतु मैं सन्त ज्ञानेश्वर इन सबों के आसुरी कुकृत्य का पर्दाफास करता हूँ और परमसत्य प्रधान सर्वोच्चता और सम्पूर्णता लक्षण वाले परमतत्त्वम् रूप आत्मतत्त्वम् शब्दरूप भगवततत्त्वम् और उनकी प्राप्ति परिचय-पहचान कराने वाले तत्त्वज्ञान रूप भगवद् ज्ञान रूप सत्यज्ञान का संस्थापन कर रहा हूँ तो इस आसुरी समाज द्वारा निन्दक-आलोचक तो कहलाता ही हूँ, उदारवादी समाज भी जब मुझे निन्दक-आलोचक ही कहेगा तो 'सत्य सनातन धर्म' का उद्धोषक- संस्थापक और संरक्षक कौन कहलायेगा? इन तथाकथित गायत्री देवी मान्यता वाले तथाकथित गायत्री देवी वालों के देव संस्थापन संस्कृति के नाम पर देव विस्थापन रूप देव द्रोहिता रूप आसुरी संस्कृति संस्थापन का पर्दाफास-भण्डाफोड करता हुआ इस काल्पनिक और झूठी तथाकथित गायत्री देवी को विस्थापित कर 'ॐ देव' को पुनर्संस्थापन रूप मेरे देव संरक्षण रूप कार्यों में सेवा-सहयोग कर इस देव संस्कृति-संरक्षक रूप मेरे परमपुनीत कार्य में सहभागीदार बनकर यशकीर्ति का भागीदार नहीं बनना चाहिये? अवश्य ही बनना चाहिये । किसी के निन्दक-आलोचक कहने-कहलाने के बावजूद भी मैं सन्त ज्ञानेश्वर अपने सकल संकल्पित-समर्पित समाज के साथ 'धर्म-धर्मात्मा-धरती' की रक्षा और देव संस्कृति संरक्षक वाले परम पुनीत कर्तव्य को करता रहूँगा-- करता ही रहूँगा। मुझे अपने इस परमपुनीत कर्तव्य से दुनिया की कोई भी आसुरी शक्ति-ताकत रोक नहीं सकती क्योंकि पूर्णत: भगवत् कृपा मेरे साथ है क्योंकि यह कार्यक्रम पूर्णत: खुदा-गॉड-भगवान का ही है और सीधे वही ही यह कर-करवा भी रहा है ।
यह देखिए तथाकथित गायत्री परिवार का पाखण्ड
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बंधुओं पहले आप मंत्र (ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्) की तुलनात्मक रूप से नीचे दी गई व्याख्या को देखें, बातें स्पष्ट हो जाएँगी। मात्र शब्दार्थ पर थोड़ा विचार करें-
श्रीराम शर्मा द्वारा दिया गया मंत्र का अर्थ:
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1. ॐ = भारतीय धर्म;
2. भूः = आत्म विश्वास;
3. भुवः = कर्मयोग;
4. स्वः = स्थिरता;
5. तत् = जीवन विज्ञान; सवितु=शक्ति संचय; वरेण्यं=श्रेष्ठता;
6. भर्गो=निर्मलता; देवस्य=दिव्य दृष्टि;
7. धीमहि = सदगुण;
8. धियो=विवेक; योनः=संयम;
9. प्रचोदयात्=सेवा।
नोट – श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘गायत्री महाविज्ञान’ (प्रथम भाग) के पृष्ठ संख्या – 133 से उपर्युक्त उद्धृत।
सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस द्वारा उपर्युक्त मन्त्र का दिया गया अर्थ :
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1. ॐ = ब्रम्हा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का संयुक्त रूप से बोध कराने वाला संकेत;
भूर्भुवः स्वः = तीनों देवों के अलग-अलग वास स्थान का संकेत है;
2. भूः =(श्री ब्रम्हा जी का);
3. भुवः =(श्री विष्णु जी का);
4. स्वः =(श्री महेश जी का);
5. तत्सवितुर्वरेण्यं = सूर्य द्वारा वरणीय अथवा सूर्य का भी उपास्य देव रूप उस;
6. भर्गो देवस्य = तेजस्वरूप देव का;
7. धीमहि = ध्यान करता हूँ;
8. धियो = बुद्धि; यो = जिससे; नः = हमारी; (जिससे हमारी बुद्धि)
9. प्रचोदयात् = शुद्ध रहे या सत्कर्म के प्रति उत्प्रेरित रहे।
उपर्युक्त को देखकर आप स्वयं निर्णय लें की क्या श्रीराम शर्मा द्वारा दिया गया उपर्युक्त शब्दार्थ-भावार्थ सही है ? क्या शब्दों का अर्थ गलत नहीं है ? इस मंत्र के अन्तर्गत किस शब्द का अर्थ ‘गायत्री’ है ? जरा सोचिए, कि जब उपर्युक्त मंत्र के संस्थापक व प्रचारक श्रीराम शर्मा ही उसका सही अर्थभाव नहीं जानते तब वे समाज का क्या सुधार करेंगे ? आखिर गायत्री परिवार जनमानस में भ्रम व भटकाव क्यों पैदा कर रहा है ?
देव मंत्र गायत्री छन्द में वर्णित, गायत्री कोई मंत्र नहीं, कोई देवी नहीं।
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गायत्री कोई देवी तो है ही नहीं, कोई मन्त्र भी नहीं है । फिर गायत्री महाविज्ञान होने का सवाल ही कहाँ? गायत्री संस्कृत-व्याकरण के अन्तर्गत 24 मात्राओं वाला एक छन्द मात्र है । चूँकि यह छन्द ज्ञेय यानी सुन्दर लय-स्वर में गाया जाने वाला है, इसलिये छन्द के प्रकारों में इस गायत्री छन्द का विशेष महत्व है-- विशेष मान्यता है । प्रारम्भ में ॐ देव के प्राप्ति और मांग के पूर्ति हेतु जब लिपिबद्ध किया गया तो यह मन्त्रवित् लिपिबद्धता 24 मात्राओं में जाकर पूरी हो गयी अर्थात् यह ॐ देव मन्त्र गायत्री छन्द में लिपिबद्ध हो गया, यानी इस मन्त्र का छन्द तो गायत्री हुआ मगर इसका अभीष्ट ॐ देव हुआ । पहले-पहल मन्त्र को देखा जाय---
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।
जब आप सभी इस मन्त्र की वास्तविकता को जानने-समझने-देखने-परखने चलेंगे तो मिलेगा कि यह मन्त्र त्रिपदी है यानी तीन पदों -- तीन भागों वाला है । पहले पद या भाग में 'ॐ भूर्भुव: स्व:' अर्थात् ॐ जो ब्रम्हा-विष्णु-महेश तीनों का ही सम्मिलित संयुक्त सांकेतिक नाम है और भू: ब्रम्हा का, भुव: विष्णु का और स्व: महेश का वास स्थान यानी पता रूप स्थान है। दूसरा पद-भाग 'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि' का अर्थ भाव है कि उस सूर्य का भी वरणीय (उपास्य) तेजस्वरूप देव का ध्यान करता हू¡ यानी इस दूसरे पद-भाग में मन्त्र के अभीष्ट उपास्य देव का रूप पहचान बताया गया है और तीसरे पद-भाग 'धियो यो न: प्रचोदयात्' का अर्थ भाव है कि अपने उपास्य देव जिसका ध्यान करता हू¡, कहा गया है, से मांग किया गया है कि जिससे मेरी बुध्दि (सत्य के प्रति-- सत्कर्म के प्रति सदा ही) उत्प्रेरित रहे ।
इस मन्त्र में किसी भी शब्द का अर्थ गायत्री देवी नहीं और गायत्री मन्त्र नहीं है । मन्त्र का अभीष्ट कोई स्त्रीलिंग देवी नहीं है बल्कि 'देवस्य' स्पष्टत: पुलिंग 'देव का' अर्थ भाव है । जब मन्त्र का अभीष्ट पुलिंग सूचक स्पष्टत: ॐ देव है फिर ये स्त्रीलिंग देवी कहाँ से आ गयी? क्या गायत्री देवी पूर्णत: काल्पनिक और झूठी नही हुई ? इस देव मन्त्र को गायत्री कहना भी झूठा और गलत नहीं हुआ ? आप सब इस सच्चाई को जानने-समझने और अपनाने का प्रयास क्यों नहीं करते ?
अजीब आश्चर्य की बात है कि संस्कृत भाषा पढ़ने-पढ़ाने वाले आचार्य पंडित संस्कृत के विद्वानगण भी 'लकीर के फकीर' बनकर गायत्री देवी और गायत्री मन्त्र कहने-लिखने और पढ़ने-पूजने ये लगे है। । प्राय: पंडित जनों के क्या, योगीजन भी इस देव-मन्त्र को गायत्री मन्त्र ही लिखने-पढ़ने-कहने-सुनने में लगे लगाये हैं । क्या इनको इतना भी नहीं सोचना चाहिये? क्या इन्हें इतना भी जानने-समझने की आवश्यकता महसूस नहीं होती कि हमारा अभीष्ट उपास्य तथाकथित स्त्रीलिंग गायत्री देवी है या पुलिंग सूचक यथार्थत: ॐ देव ? मन्त्र तथाकथित गायत्री का है या यथार्थत: ॐ देव का ? इतना भी जानने-समझने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई ।
देव द्रोहिता रूप तथाकथित गायत्री प्रचार से रक्षा हेतु आहवान
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सद्भावी सत्यान्वेषी बन्धुओं। आजकल एक घोर ढोंगी-पाखण्डी व्यक्ति और उसका समाज तथाकथित गायत्री के प्रचार-प्रसार में समाज के धन और धर्मभाव का शोषण करते हुये बेहाया पौध की तरह फैलने-फैलाने में बड़े तेजी से लगा हुआ है । वास्तविकता यह है कि उन सबों को तथाकथित गायत्री मन्त्र का शब्दार्थ भी, मालूम नहीं है। वे सब ॐ देव मन्त्र “ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्!'' को गायत्री छन्द मात्र में उद्धृत होने के कारण तथाकथित गायत्री मन्त्र, तथाकथित गायत्री देवी, तथाकथित गायत्री परिवार आदि-आदि को काल्पनिक रूप से पैदा करके (हालाँकि उन्हीं सबों के तरह से ही पूर्व में भी कुछ ने ऐसा ही किया था जिसको बताकर) और ॐ देव को विस्थापित करके उसके स्थान पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर उसे गायत्री नाम दे रखा है । आप सब मेरी इन दो-एक बातों पर जरा ध्यान दें कि.........
गायत्री छन्द मात्र में उद्धृत होने के नाते ॐ देव मन्त्र के अभीष्ट ॐ देव को समाप्त कर उनके स्थान पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर प्रचारित करना-कराना क्या देव द्रोहिता नहीं है? असुरता नहीं है ? क्या यह मन्त्र देवी (स्त्रीलिंग) प्रधान है या 'भर्गोदेवस्य (पुलिंग) प्रधान? जब यह मन्त्र ॐ देव (पुलिंग) प्रधान है तब यह देवी (स्त्री लिंग) कहाँ से आ गयी ? क्या प्यार पाने के लिये पिता जी को माता जी कहकर बुलाया जाय और उनके फोटो-चित्र को स्त्री रूपा बना दिया जाय ? यही आप सबकी मान्यता है ? पिता जी के नाम-रूप के जगह पर काल्पनिक कोई स्त्री रूपा को पिताजी स्वीकार कर लिया जाय ? और वास्तविक पिता जी को हटा दिया जाय ? उन्हें समाप्त कर दिया जाय ? यही 'देव संस्कृति' संस्थापन कहलायेगा जिसमें ॐ देव को ही समाप्त करके उसके जगह पर काल्पनिक देवी को स्थापित कर दिया जाय ? क्या यह देव द्रोहिता नहीं है? नि:संदेह यही देव द्रोहिता और यही असुरता भी है । क्या कोई भी मेरी इन बातों का समुचित समाधान देगा ?
सच्चाई और अपनत्व हेतु आप से अनुरोध है कि आप इस देव-द्रोहिता रूप असुरता से बचकर मन्त्र के वास्तविक मान्यता को (ॐ देव मन्त्र-नाम और ॐ देव रूप भर्गो देवस्य' को) महत्व दें, न कि बिल्कुल ही मिथ्यात्व पर आधारित काल्पनिक तथाकथित गायत्री नाम-रूप मन्त्र और देवी को । सच्चाई जानने के लिए उन्हीं लोगों जैसे पूर्व के ऋषि-महर्षियों का कथन अथवा कुछेक ग्रन्थों में आये हुये कुछेक उध्दरण मात्र पर आश्रित रहना पर्याप्त और उचित नहीं है । बुध्दिमानी इसमें नहीं कि कोई कुछ भी कहे तो आँख बन्द करके मान लिया जाय। मन्त्र के अर्थ-भाव और अभीष्ट को स्वयं भी जानें-देखें कि स्वयं इस मन्त्र का ईष्ट-अभीष्ट कौन-है-देव (पुलिंग) या देवी (स्त्रीलिंग)?
चन्दा के नाम पर अपने मिथ्या महत्वाकांक्षा पूर्ति हेतु अपने अनुयायियों से भीख मँगवा-मँगवा कर और नौकरी के रूप में उनको कमीशन देकर अधिकाधिक धन उगाही करने मात्र के लिये ही तथाकथित धर्म नाम आयोजन आयोजित करना क्या जनता और जनमानस के धन और धर्म भाव का शोषण करना नहीं है ? ऐसे शोषण से जनता और जनमानस को नि:संदेह बचाने के लिये, सही और समुचित लगे तो मेरे अभियान में, सद्भाव के साथ लगकर आप यश-कीर्ति के भागीदार बनें और ऐसे आसुरी दुष्प्रचार का भण्डाफोड़ कर जनमानस में इस सच्चाई को रखकर उनके शोषण से उनकी रक्षा करने में अपने को लगें-लगावें । सब भगवद् कृपा ।
----------- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस